Saturday 27 June 2015

Curious case of 'leap second' : क्यों 1 सेकंड बड़ा होगा ये जून?

'1 सेकंड की कीमत तुम क्या जानो रमेश बाबु?''
बॉलीवुड के एक पोपुलर फिल्म के एक डायलॉग में हमलोग अगर थोड़ी छेड़ छाड़ कर दें तो यह लाइन लोगों को 'टाइम इज मनी' वाला ज्ञान दे सकती है. मगर करीब 7 अरब आबादी वाली इस दुनिया में कुछ ही लोग ऐसे हैं जो एक सेकंड की इम्पोर्टेंस समझ सकते हैं. और उनमे भी बहुत कम लोग ऐसे हैं जो एक सेकंड की इम्पोर्टेंस आपको समझा सकते हैं.
आजकल दुनियाभर के इन्ही कुछ गिने चुने लोगों में इस एक सेकंड की कीमत को लेकर बहस चल रही है.
अगर आपको पहले से पता हो तो बहुत अच्छी बात है, और अगर नहीं पता तो आज जानिये आखिर ये एक सेकंड को लेकर विवाद क्या है?

इस सेकंड को साइंस की भाषा में लीप सेकंड  कहते है. आपको पता होगा लीप इयर  क्या होता है?
जी हाँ, वही जो चार साल पे एक बार आता है. हमारी धरती 365 दिन और 6 घंटे में सूर्य का एक चक्कर लगाती है, जिसे हम एक साल गिनते हैं. ये 6 घंटे हर चार साल में एक दिन बनकर मॉडर्न ग्रेगोरियन कैलेंडर  में फरवरी के हिस्से आये 28 दिनों में जुट जाते हैं और वो साल लीप इयर  कहा जाता है.
आइये अब जानते हैं कि लीप सेकंड  क्या होता है?
सालों पहले 'इंटरनेशनल अर्थ रोटेशन सर्विस' की रिसर्च में पता चला कि हमारी धरती अब अपनी धुरी पर एक चक्कर लगाने में 2.3 मीलीसेकंड का समय ज्यादा ले रही है. यानी एक दिन में 86,400.002 सेकंड्स हो रहे हैं. (इसकी वजह धरती और चन्द्रमा के बीच लगने वाला ग्रेविटेशनल फ़ोर्स है.) जिसके बाद, इस अंतर के एक सेकंड पूरा होने पर इन्हें हमारी घड़ी में जोड़ने की परंपरा शुरू हुई. लेकिन इससे हमारी, आपकी घड़ी को कोई फर्क नहीं पड़ता. ये काम दुनिया में अलग अलग जगहों पर लगी करीब 400 एटॉमिक घड़ियों के साथ किया जाता है.
लीप सेकंड की शुरुआत के बाद धरती की रोटेशन में आये मीलीसेकंड्स के
बदलाव को दिखाता ग्राफ. इमेज सोर्स: UniverseToday
बर्न, स्विट्ज़रलैंड के मिट्रालजी ऑफिस में स्थित एक एटॉमिक घड़ी.
इमेज सोर्स: UniverseToday

इतिहास में लीप सेकंड
30 जून 1972 को पहली बार लीप सेकंड  जोड़ा गया था. तब से अब तक 25 सेकंड जोड़े जा चुके हैं. हर 18-24 महीने में एक बार इन्हें सुविधानुसार 30 जून या 31 दिसम्बर की रात को जोड़ा जाता है.
अब सवाल ये है कि जब इससे हमारी, आपकी घड़ियों को कोई फर्क नहीं पड़ता तो फिर इसपे बात क्यों?
इससे पहले आइये जानते हैं कि आखिर हमारे टाइम को नियंत्रित करने वाला सिस्टम क्या है?
आज से 200 साल पहले तक हमलोग समय की गणना 'Astronomical Observed Time' (UTI) के आधार पर करते थे. आज हमलोग इसके साथ ही साइंटिफिक और इलेक्ट्रॉनिक कैलकुलेशन्स के लिए 'कोऑर्डिनेटेड यूनिवर्सल टाइम' (UTC) यूज़ करते हैं. समय का SI मानक सेकंड है, जिसके अनुसार,
''सीज़ियम-133 एटम द्वारा अपने ग्राउंड स्टेट में  9,192,631,770 कम्पन में लगने वाले कुल समय को 1 SI सेकंड कहा जाता है."
ये एटॉमिक टाइम बहुत शुद्ध माना जाता है और कई सौ सालों तक एकदम सही समय बता सकता है. इसीसे 'इंटरनेशनल एटॉमिक टाइम' (TAI) बनाया गया है, UTC इसी सिस्टम पर आधारित है.
UTI में समय की गणना सूर्योदय और सूर्यास्त के आधार पर की जाती थी, जिससे सेकंड, मिनट और घंटा बने हैं. सूर्योदय और सूर्यास्त, धरती के अपनी धुरी पर एक चक्कर पूरा करने के अनुसार होते हैं. अब जैसा कि हम अपनी दिनचर्या को सूर्योदय और सूर्यास्त के हिसाब से ढाल चुके हैं तो धरती की गति में कोई भी परिवर्तन हमारे समय की सेटिंग को गड़बड़ कर सकता है.
तो असल में ये लीप सेकंड  UTC और UTI के बीच एक बैलेंस बनाकर रखता है.

हमारी आज की दुनिया बहुत हद तक कंप्यूटरों और अन्य इलेक्ट्रॉनिक कम्युनिकेशन डिवाइसेज पर निर्भर है. ये सभी अपने टाइम सेटिंग के लिए 'नेटवर्क टाइम प्रोटोकाल' (NTP) का यूज़ करते हैं. NTP's 'इंटरनेशनल एटॉमिक टाइम' (TAI) के हिसाब से इन डिवाइसेज का समय सही रखते हैं.
साइंटिस्ट्स एटॉमिक घड़ियों में तो एक सेकंड जोड़ सकते हैं मगर हमारे अन्य यंत्रों में यह संभव नहीं है. इसी वजह से जब दुनिया भर की एटॉमिक घड़ियाँ 30 जून की रात 11:59:59 के बाद 11:59:60 का टाइम दिखाएंगी, अन्य डिजिटल घड़ियाँ ऐसा नहीं कर पाएंगी क्यूंकि उनकी प्रोग्रामिंग में ऐसा नहीं है. पिछली बार जब जून 2012 में ऐसा किया गया था तो 'मोजिला' और 'लिंक्डइन' जैसी वेबसाइट क्रैश हो गयी थीं. लिनक्स ऑपरेटिंग सिस्टम और जावा लैंग्वेज वाले प्रोग्राम भी गड़बड़ हो गए थे. इस वजह से दुनिया भर में करोड़ों कंप्यूटर प्रभावित हुए थे साथ ही बैंकिंग सिस्टम, एयरलाइन्स ट्रैफिक कंट्रोल और जीपीएस आधारित ट्रांसपोर्ट सर्विस पर भी बुरा असर हुआ था.

फिलहाल दुनिया की बड़ी बड़ी सॉफ्टवेयर कंपनियां इस समस्या का हल निकालने में लगी हुई हैं. उन की मेहनत कितनी सफल होती है ये तो 30 जून को ही पता चलेगा. सॉफ्टवेयर एक्सपर्ट्स की सबसे बड़ी प्रॉब्लम यह है कि इस एक सेकंड की वजह से कंप्यूटरों में हर बार कुछ नयी तरह की दिक्कतें सामने आ जाती हैं जिनका अनुमान भी नहीं लगाया जा सकता है.
अमेरिका सहित कई देश इस लीप सेकंड  को ख़त्म करने की मांग कर चूके हैं मगर अन्य बहुत सारे देशों के विरोध की वजह से यह अबतक संभव नहीं हो सका है.
इसी नवंबर में जेनेवा में होनेवाले 'वर्ल्ड रेडियोकम्युनिकेशन कांफ्रेंस' में इस समस्या पर विचार होना है. वहां यह भी सोचा जाना है कि क्या दुनिया से  'Astronomical Observed Time' (UTI) को ख़त्म करके पूरी तरह से UTC या समय के SI सिस्टम को अपनाया जाए. मगर इसके भी अपने अलग खतरे हैं. इसलिए, फिलहाल तो लीप सेकंड का फ्यूचर सेफ है.
अगर हमलोग लीप सेकंड  जोड़ना हटा भी दें तो इससे यह समस्या बस कुछ सौ सालों के लिए टल जायेगी, ख़त्म नहीं होगी. तब हमें 2600 ईस्वी के आसपास लीप ऑवर  जोड़ना होगा. नहीं तो लगभग 10000 ईस्वी में लोग रात के 1 बजे सुबह का नाश्ता कर रहे होंगे.